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श्रीकृष्ण बाल कथा (Shri Krishna Baal Katha)

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श्रीकृष्ण माहात्म्य

हरिगीतिका छंद (२८ मात्रिक १६,१२ पर यति)

प्रथम सर्ग - श्रीकृष्ण बाल कथा

श्रीकृष्ण की सुन लो कथा तुम, आज पूरे ध्यान से।

भवसागरों से मुक्ति देती, यह कथा सम्मान से॥

झंझावतों की रात थी जब, आगमन जग में हुआ।

प्रारब्ध में जो था लिखा तय, कंस का जाना हुआ॥

गोकुल मुझे तुम ले चलो अब, हो प्रकट बोले हरी।

माया वहाँ मेरी है जन्मी, तेज से है वो भरी॥

ज्यूँ कृष्ण का आना हुआ त्यूँ, बेड़ियाँ सब खुल गयीं।

ताले लगे थे द्वार पर जो, चाभियाँ खुद लग गयीं॥

प्रहरी थे कारागार के सब, नींद में सोये हुये।

जैसे किसी माया में पड़ कर, स्वप्न में खोये हुये॥

इक टोकरी में डाल बाबा, नन्द घर को चल पड़े।

वर्षा प्रबल यूँ हो रही थी, तात चिंता में बड़े॥

कैसे करें हम पार नदिया, बाढ़ इसमें आ गयी।

जब छू लिये चरणन तिहारे, शांति यमुना पा गयी॥

फन वासुकी छतरी बना कर, वृष्टि से रक्षा किये।

उस पार बाबा आ गये तब, टोकरी सर पर लिये॥

अपने लला को साथ ले कर, नन्द बाबा से मिले।

पूरी कथा उनको सुना कर, आस की किरणें खिले॥

बाबा कहे जो भाग्य में है, अब वही होगा घटित।

है ले लिया अवतार प्रभु ने, देवताओं के सहित॥

थीं नन्द के घर माँ यशोदा, योगमाया साथ में।

दोनों खुशी से सो रही थीं, हाथ डाले हाथ में॥

वसुदेव ने सौंपा हरी को, योगमाया साथ ले।

लाला निहारे तात को जब, छोड़ कर बाबा चले॥

फिर कंस कारागार आया, योगमाया छीन ली।

पर दिव्य देवी मुस्कुराती, खिलखिलाती उड़ चली॥

बोली कि तेरा काल दुष्टे, आ गया है अब निकट।

जल्दी हरी आकर हरेंगे, विश्व के संकट विकट॥

माँ देवकी वसुदेव बाबा, जेल में ही रह गये।

पर आपके सम्बल सहारे, कष्ट सारे सह गये॥

बचपन बिताया माँ यशोदा, संग क्रीड़ा कर कई।

गोकुल निवासी धन्य होते, देख लीला नित नई॥

यूँ बालपन में ही किया था, दानवों का सामना।

संहार कर फिर कंस का की, पूर्ण सबकी कामना॥

विष-सर्प से दूषित भयी जब, जल किसी ने न पिया।

यमुना नदी में कूद कर तब, कालिया मर्दन किया॥

गिरिराज को अंगुल उठाकर, सात दिन धारण किया।

अभिमान सारा इन्द्र का यूँ, एक पल में हर लिया॥

सम्मान नारी का करें सब, सीख सबने ये लिया।

गीता सुनाकर पार्थ का भी, मार्गदर्शन कर दिया॥

अवतार ले जग को सुधारा, कम हुआ जब धर्म है।

है आपने ही ये सिखाया, श्रेष्ठ सबसे कर्म है॥

(इति-प्रथम सर्ग)

श्रद्धा सहित

विवेक अग्रवाल

(मौलिक और स्वलिखित)

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हरिगीतिका छंद (२८ मात्रिक १६,१२ पर यति)

प्रथम सर्ग - श्रीकृष्ण बाल कथा

श्रीकृष्ण की सुन लो कथा तुम, आज पूरे ध्यान से।

भवसागरों से मुक्ति देती, यह कथा सम्मान से॥

झंझावतों की रात थी जब, आगमन जग में हुआ।

प्रारब्ध में जो था लिखा तय, कंस का जाना हुआ॥

गोकुल मुझे तुम ले चलो अब, हो प्रकट बोले हरी।

माया वहाँ मेरी है जन्मी, तेज से है वो भरी॥

ज्यूँ कृष्ण का आना हुआ त्यूँ, बेड़ियाँ सब खुल गयीं।

ताले लगे थे द्वार पर जो, चाभियाँ खुद लग गयीं॥

प्रहरी थे कारागार के सब, नींद में सोये हुये।

जैसे किसी माया में पड़ कर, स्वप्न में खोये हुये॥

इक टोकरी में डाल बाबा, नन्द घर को चल पड़े।

वर्षा प्रबल यूँ हो रही थी, तात चिंता में बड़े॥

कैसे करें हम पार नदिया, बाढ़ इसमें आ गयी।

जब छू लिये चरणन तिहारे, शांति यमुना पा गयी॥

फन वासुकी छतरी बना कर, वृष्टि से रक्षा किये।

उस पार बाबा आ गये तब, टोकरी सर पर लिये॥

अपने लला को साथ ले कर, नन्द बाबा से मिले।

पूरी कथा उनको सुना कर, आस की किरणें खिले॥

बाबा कहे जो भाग्य में है, अब वही होगा घटित।

है ले लिया अवतार प्रभु ने, देवताओं के सहित॥

थीं नन्द के घर माँ यशोदा, योगमाया साथ में।

दोनों खुशी से सो रही थीं, हाथ डाले हाथ में॥

वसुदेव ने सौंपा हरी को, योगमाया साथ ले।

लाला निहारे तात को जब, छोड़ कर बाबा चले॥

फिर कंस कारागार आया, योगमाया छीन ली।

पर दिव्य देवी मुस्कुराती, खिलखिलाती उड़ चली॥

बोली कि तेरा काल दुष्टे, आ गया है अब निकट।

जल्दी हरी आकर हरेंगे, विश्व के संकट विकट॥

माँ देवकी वसुदेव बाबा, जेल में ही रह गये।

पर आपके सम्बल सहारे, कष्ट सारे सह गये॥

बचपन बिताया माँ यशोदा, संग क्रीड़ा कर कई।

गोकुल निवासी धन्य होते, देख लीला नित नई॥

यूँ बालपन में ही किया था, दानवों का सामना।

संहार कर फिर कंस का की, पूर्ण सबकी कामना॥

विष-सर्प से दूषित भयी जब, जल किसी ने न पिया।

यमुना नदी में कूद कर तब, कालिया मर्दन किया॥

गिरिराज को अंगुल उठाकर, सात दिन धारण किया।

अभिमान सारा इन्द्र का यूँ, एक पल में हर लिया॥

सम्मान नारी का करें सब, सीख सबने ये लिया।

गीता सुनाकर पार्थ का भी, मार्गदर्शन कर दिया॥

अवतार ले जग को सुधारा, कम हुआ जब धर्म है।

है आपने ही ये सिखाया, श्रेष्ठ सबसे कर्म है॥

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