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GESPONSERT
After taking a four year break on his Oklahoma ranch, Blake Shelton is back on the road and riding the high of his new album, For Recreational Use Only . After 29 number one hits, and a detour into Hollywood, Blake’s scorching hot single “Texas” proves he’s still got it. Country Thunder CEO Troy Vollhoffer recalls meeting Blake Shelton during a crazy storm that really put the “thunder” in Country Thunder. After 23 seasons on The Voice , Blake opens up about spreading himself thin and making the choice to be “a TV guy or a touring guy.” The two reminisce about Toby Keith and why being a road dog is the best way to learn how to entertain a crowd. Blake reveals how his worst on-stage “ass-kicking” taught him how to be himself in front of a crowd. After taking so much time away from the spotlight, Blake shares that it was Post Malone who reminded him that he’s still a country singer at heart.…
Safar Yadon Ka
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×दूर दराज ग्रामीण भारत में आज भी व्यवस्था दशकों बाद भी जैसे वहीं रुकी हुई है। ऐसा लगता है हालात और स्थितियां वही है बस चरित्र बदल गए हैं। क्या कभी इस भ्रष्ट व्यवस्था से समाज को छुटकारा मिल पाएगा? कब तक दशकों पहले के समाज की मानसिकता की पुनरावृति होती रहेगी?
वतन के उस पार की एक दुनिया। जीवन भर स्टेटस और ऊंचा मकाम हासिल करने की ख्वाहिश। इस बीच ज़िन्दगी कहीं हाथ से फिसली जाती है। पैसा कमाने की लत और रास्ते फिर उन्हें एक ढर्रे पर डालना चाहते हैं और पैसा कमाने हसरतें सर उठाती है। लेकिन इसके आगे क्या?
स्वयं से बेटी तक के सफर में कुछ डर और आशंकाएं। रिश्तों पर अविश्वास। पल प्रतिपल संदेहों को टटोलती और स्मृतियां में डूबती उतराती एक संवेदशील कहानी।
विभाजन की त्रासदी और दादी के मन में बसा मुल्तान शहर, मनुष्य के द्वारा खीची गई दो देशों के बीच लकीरों को नकारती हैं। दादी के पास कहने के लिए बहुत कुछ नहीं था। पर उसके पास मुल्तान की बातें थी। वह मुल्तान के साथ रही इच्छा ये की उसके बाद भी मुल्तान किसी के मन में ज़िंदा रहे।
इस दुनिया में सिर्फ औरत को ही अपना घर छोड़ना पड़ता है। जानवरों के पास भी यह हक है कि वे अपने इलाके को नहीं छोड़ते। दादी के मन में भी एक शहर बसता है। जाने क्या है यह रिश्ता।
सम्बन्धों में सम्मान और प्रेम की कमी एक अजीब खालीपन पैदा करती है। संबंध वक्त के मोहताज नहीं, वे अपना रास्ता बना ही लेते है जहां उन्हें अपने लिए उर्वरा ज़मीन मिलती है। इंसान को जहां प्रेम और सम्मान मिलता है फिर भले ही आप लाख सामाजिक व्यवहार और संस्कार की बात क्यों ना करें।
वैवाहिक जीवन और प्रेम दो अलग धरातल हैं। साथ रहकर भी क्या साथ रहते हैं लोग? क्या है जो ढूंढते हैं अपने मन का, जहां खोल दे मन के द्वार और जी लें थोड़ा सा जीवन, आज के लिए। वर्तमान संबंधों में नए अर्थ ढूंढती एक एक बेहरीन कहानी।
जीवन में कुछ चरित्र अजीब होते हैं। ऐसे ही एक चरित्र हैं मोहन झा। देखें कौन है मोहन झा और क्या है उनका चरित्र।
स्त्री पुरुष संबंधों के दायरों के इतर एक तबका है, जिसे अपनी पहचान, अपनी प्रवृति, और प्रेम को छुपाना पड़ता है। अब कानून में बदलाव से थोड़ी राहत मिली है लेकिन क्या समाज से भी?
भारतीय समाज में आज भी स्त्री पुरुष संबंधों को ही मान्यता है। इसके इतर संबंधों की बात सोच पाना या जीवन में उसे सहजता से ले पाना आज भी एक बड़ी चुनौती है। लेकिन सच पे पर्दा कब तक?
एक सैनिक का जीवन और बंदूक के साथ उसका संवाद इस कहानी के माध्यम से दुनिया के युद्धों की हकीकत बयां करती है। दुनिया आज भी सैनिकों के जीवन से कुछ नहीं सीख पाई। काश दुनिया थोड़ी संवेदनशील हो जाए।
माँ और मिट्टी की जड़ें बहुत गहरी होती हैं। बदलते परिवेश और शहरीकरण के अंधानुकरण में बहुत कुछ है जो वक्त के चलते दाँव पर लगा दिया गया। रिश्ते, नाते, अपनापन, अपनी ज़मीन, अपना घर उससे जुड़ी यादें, बहुत कुछ ऐसा था, जिसमें ज़िंदगी समाहित थी। अब लोग ज़िंदा तो है लेकिन क्या सही मायने में ज़िंदगी से सराबोर हैं?
हर इंसान की जीवन यात्रा उसकी अपनी जीवन यात्रा है। किसी के पदचिन्हों पर चलकर क्या स्वयं की यात्रा पूरी हो सकती है। क्या दूसरों के द्वारा गढ़े गए रास्ते आपके अपने रास्ते हो सकते हैं? ऐसे ही एक रास्ते को अपना आदर्श मानकर अनुष्ठा ने उस पर चलने की कोशिश की है, देखें उसकी परिणति।
क्या स्वयं का जीवन लेना इतना आसान है? क्या होता है आत्महंता के दिमाग में? कैसे जुड़ती है कड़ियाँ और पहुँचती है एक बिन्दु पर जहां जीवन निरर्थक लगता है।
एकतरफा प्रेम की पींगें और उस पर दांव पर लगा जीवन। लेकिन प्रेम है की वह कुछ भी सोचना समझना नहीं चाहता।
शादी के बाद भरा पूरा घर, एक गुले गुलज़ार आशियाना। बच्चों का धीरे धीरे उड़ जाना। कैसा होता है बाकी बचा जीवन और स्मृतियों में गोते लगाना।
स्त्री और पुरुष के अलावा ईश्वर ने एक तीसरा रूप भी गढ़ा है। समाज से परित्यक्त इस वर्ग के पास भी दिल है, भावनाएं और संवेदनाएं भी हैं। जहां अपने, अपने न हुये वही कभी कभी ये भी किसी के काम आते है और रिश्ते बनाते हैं।
बढ़ती उम्र और उसके सपने लेकिन सामाजिक वर्जनाओं के चलते लड़की होने की चिंताएं। एकल परिवार और बुजुर्गों के तिरस्कार का खामियाजा भुगतता परिवार।
एक स्त्री की सत्ता उसके पुरुष से बंधी है। पुरुष है तो उसका वजूद है। अगर परित्यक्ता है जीवन एक बोझ है, संत्रास है पीड़ा है। वह किसी की ज़रूरत नहीं, समाज के लिए उसका कोई वजूद नहीं। लेकिन अगर उसने अपने लिए मरूस्थल में एक बूंद की प्यास की भी इच्छा ज़ाहिर की तो वह पूरे समाज की जवाब देह है। कैसी विडम्बना है।
एक परित्यक्त स्त्री का जीवन एक अजीब जीवन यात्रा है। ज़िंदा होते हुये भी, हर पर मौत। यह मौत कब कब और कैसे होती है इसे गढ़ा है जयश्री रॉय ने। Story: Nisang Writer: Jaishree Roy
प्रेम की कोई भाषा नहीं, यह एक निज भाव है, बस जिससे होता है टूटकर होता। प्रेम की भाषा इंसान, पशु, पक्षी, वन्य जीव जन्तु सब समझते है और यह एक ऐसा सूत्र है जिससे कोई भी अनायास ही जन्म जन्मांतर के लिए बांध जाता है।
बेटी का जन्म लेना सिर्फ जन्म लेना नहीं होता वह अपने साथ लाती है ढेर सारी खुशियां, एक ठहरी हुई मुस्कुराहट, एक अपनापन, मधुरता और जीवन। लेकिन सामाजिक वर्जनाओं के चलते साथ में चलते हैं, दुख, पीड़ाएं और अनगिनत भय: Story: Neele Ghode wale sawaron ke naam Writer: Kamlesh Bhartiya
सीधी सरल ज़िंदगी अच्छी भली ज़िंदगी में, किसी की गलतियों का खामियाजा उसने भुगता। मन समझाया और उस औलाद को अपना लिया उसे प्रेम के साथ। Story: Jeevan Chalne ka Naam Writer: Narendra Kaur Chhabra
जीवन यात्रा में इंसान के कई पड़ाव होते हैं। परिवार और समाज इंसान को बांधे रखते हैं लेकिन उसका मन मधुर स्मृतियों में टका होता है और हर पल अपनी ज़मीन तलाशता रहता है। Story: Bunde, writer: Anjana Chhalotre
इंसान के मन का भेद जान पाना बड़ा मुश्किल है। जीवन में साथ रहते हुये भी किसके मन में क्या चल रहा है कोई पता नहीं लगा सकता। श्रद्धा नायक एक विवाहिता हैं और पति का एक दिन अचानक गायब होना कहानी को एक अजीब मोड पर ला देता है।
एक स्त्री के लिए भारतीय समाज में घर, परिवार और समाज बहुत मायने रखता है। बांझ शब्द से अभिशप्त नारी के लिए इस समाज में कोई जगह नहीं, लेकिन यहाँ शीला तो अब सब कुछ होते हुये भी ममत्व के सुख से महरूम है, जो उसे गहरे सालता भी है। यह सुख किसी भी स्त्री की पूर्णता के लिए ज़रूरी है।
एक स्त्री के लिए ममत्व की आस से बढ़कर कुछ नहीं। लेकिन यह सिर्फ उसी के हाथ में हो ऐसा नहीं है। पुरुष का संसर्ग और ईश्वर की सीधी नज़र और कृपा भी इसके लिए जरूरी है। इन सबके संयोग से ही उसके दामन में खुशी भरती है और वह पूर्ण होती है। इस संदर्भ में स्त्री का सब कुछ ठीक रहा तो उसका सौभाग्य और नहीं तो दुर्भाग्य और इसी के बीच में युगों युगों से फंसी है स्त्री।…
कुछ दुख ऐसे होते हैं जिन्हें किसी को नहीं बता सकते हम।...पर रिश्तों में कभी कभी ऐसा भी होता है की आप इतना समझ जाते है इतना दुख पी लेते हैं की आगे मिलने वाला दुख बेअसर हो जाता है, फिर आप चलते नहीं...वहीं रुक जाते हैं। माज़ी की खूबसूरत यादों को दोहराते हैं। प्रेम में जीते हैं.....हँसते हैं...रोते हैं....मगर वो अतीत होता है।…
दुनिया परिवर्तनशील है तो प्रेम क्यों नहीं? जब हर चीज़ का एवोलुशन हो रहा है तो प्रेम का क्यों न हो। प्रेम की पड़ताल, सम्बन्धों की बारीकियाँ और सहज प्रेम के धारा को सहेजती यह कहानी आज रिश्तों को एक मजबूत आधार देती है और प्रेम में अपने लिए क्या बेहतर है इसे भी बहुत खूबसूरती से बताती है।
पिता के सिद्धान्त और पुत्र का यथार्थ के धरातल पर अपने ढंग से जीवन को देखने की दृष्टि को नई बात नहीं। अक्सर पिता पुत्र के सम्बन्धों में बहुत कुछ वक्त के साथ टूट जाता है। सिद्धांतवादी पिता के लिए यह एक असहनीय दर्द बनकर उभरता है, और उसे निरंतर सालता रहता है।
एक ऐसी संतान न जिसके आने की खुशी न जाने का गम लेकिन फिर भी क्या है एक स्त्री होना और उसकी पीड़ा से गुजरना। वह नदी सूखती नहीं सच वह अब भी बहती है।
एक स्त्री मात्रत्व की गहरी पीड़ा से गुजरते हुये स्वयं के गर्भ में ईश्वरीय लीला का कोप झेलती है। प्रेम, परिवार और जीवन के बीच झूलती यह कहानी स्त्री होने की और पाकर खोने की पीड़ा के धागों से बुनी गई है।
स्त्री और पुरुष सम्बन्धों में टकराता अहम और स्पेस की समस्या को लेकर लिखी गई एक बेहतरीन कहानी। प्रिया जहां प्रतिधित्व करती है आज की एक महत्वाकांक्षी स्वतंत्र विचारों से लैस एक आधुनिक नारी का, वहीं मनोहर एक पढ़ा लिखा नौजवान होकर भी पत्नी की मूल सत्ता को स्वीकार नहीं पाता। यह हर उस इंसान की कहानी है जो आज भी एक ठहरी हुई सोच के साथ जी रहा है।…
एक आम इंसान की दुनिया और उसके बहते दुख किसी न किसी रूप में बाहर आ ही जाते हैं। प्राचीन एतिहासिक इस्मारकों को घूमाने वाले गाइड भी समय और समाज को अपने ढंग से पढ़ते हैं। सुने एक ऐसी ही खूबसूरत कहानी - देश दर्शन जिसे लिखा है कमलेश भारतीय ने।
हताश निराश जीवन का कहर कहीं टूटता है तो वो या तो महिलाओं पर या बच्चों पर। पिता की नादानियों का खामियाजा भुगता एक मासूम बच्चे ने, कैसे एक फैसले से कई ज़िंदगियाँ बदल गईं। सुनिए प्रतिभा जौहरी के द्वारा लिखी कहानी झुलसी पंखुड़ियाँ।
प्रेम के रास्ते में परिवार, धर्म, रीतिरिवाज और सोच अक्सर आधे आती है लेकिन प्रेम सभी गंतव्यों को पार कर अपना रास्ता बना ही लेता है। नांसी और उसके प्रेमी का जीवन भी कुछ ऐसा ही है।
अनाथ शैरोन का टूटकर बिखरना और बिली में नए जीवन को तलाशना। प्रेम और ममत्व में उलहे बिली की कहानी का क्या अंजाम होगा।
बीली एक वयस्क तो हुआ लेकिन कुछ धारणाओं के साथ, उसे प्रेमिका तो मिली लेकिन उसने उसमें माँ देखनी चाही और प्रेमिका को माँ नहीं चाहिए।अंतत बीली ने माँ के अलावा अपने जीवन से औरत के किसी भी रिश्ते को अपनी डिक्सनरी से निकाल फेंका है।
औरत के कई रूप है, माँ, पत्नी, प्रेमिका, दोस्त, हमसफर और न जाने कितने। लेकिन बच्चा एक ही रूप जानता है, माँ का रूप। अपनी कैद एक ऐसी ही माँ और बेटे की नज़दीकियों की कहानी है, जिसमें वक़्त बदला, शरीर बदला, जीवन बदला लेकिन अगर नहीं बदला तो माँ का स्मृतियों में धंसा उसका गहरा रूप और प्रभाव।
रजवाड़ों में हवेलियों के पंजे से निकल पाना इतना आसान नहीं। प्रेम अगर आग है तो दर्द उसको और भड़काने वाला घी। एक तरफ सुवासिनी का जीवन, दूसरी और बिसन का जीवन और तीसरी ओर है कुँवर नाहर सिंह की सरकार, जहां इंसानी दर्द और पीड़ा की कोई सुनवाई नहीं। क्या कहानी के तीसरे भाग में प्रेम अपनी गति पाएगा या मिलेगी मौत?…
सुवासिनी की दशा उस परिंदे की तरह है जो बंद पिंजरे में छटपटा भी नहीं सकता। दुख है लेकिन उसे बता भी नहीं सकता, क्योंकि यहाँ हवेली के मर्दों के सामने कोई कानून नहीं। सुवासिनी की इस गहरी पीर को बिसन के अलावा एक और इंसान ने समझा है। इसे जानने के लिए सुनते है दर्द और बिखराव के बीच झूलती सुवासिनी की कहानी।
रजवाड़ों और हवेलियों में हमेशा से तमाम रज़ दफन होते हैं। शायद ही उनका किसी को पता चलता हो। घटनाओं को अंजाम देने में और तमाम गहरे छुपे राज़ों को छुपाने में हवेली के लोग ही शामिल होते हैं।सुवासिनी का कुँवर के साथ विवाह, उसका अपने पहले प्रेम में डूबा मन, उसके लिए काल बन जाता है। ऐसी ही एक खूबसूरत कहानी है 'तन मछरी, मन नीर'।…
मन की चाहत और हृदय के स्वाभाविक उच्छवास को परंपरा और रीति रिवाजों की भेंट चढ़ने देना और उसके बाद आजीवन एक सहज रिश्ते की कल्पना का अभिशाप झेलना देश के करोड़ों युवाओं की कहानी है। जीवन ढल तो किसी के भी साथ जाता है लेकिन क्या पीड़ित मन अपनी बात कह पाता है? आजीवन कृत्रिम गढ़े सम्बन्धों को न्यायोचित ठहराना और अंत में भाग्य में लिखा होने की कहानी को अपनी नियति मान बैठना, यह सिलसिला सदियों से चल रहा है। रेणु मिश्रा की कहानी इन बारीक रेशों को परत दर परत उघाड़ती है।…
परिवार, समाज और संस्कार के चलते व्यक्ति के प्रेम से जुड़ी भावनाओं का दमन और गाहे बगाहे मन के किसी कोने से झांकती वो हसरतें बार बार सिर उठाती है। प्रेम में एक दोहरी ज़िंदगी आज इस देश की आधी से ज़्यादा आबादी का सच है। क्या सहज, सरल, स्नेहिल प्रेम के लिए इस समाज में कोई स्थान है? क्या इन रिश्तों को कोई नाम दिया जा सकता है? ऐसी ही तमाम किस्सो को यह कहानी स्वयं में समेटे है। कहानी अच्छी लगे तो शेर अवश्य करना।…
गीताश्री देश की एक लोकप्रिय हिन्दी कथाकार हैं। आंचलिक कहानियों का हमेशा से एक सौन्दर्य रहा है। इस कहानी में रूंपा की अपनी एक छोटी सी दुनिया है, जो सजने, संवरने की चाहत में बिखरती, उजड़ती है और उसे ज़िन्दगी के एक ऐसे मकाम पर लाकर खड़ा कर देती है जहां भाग्य की नियति स्वयं इंसान के लिए कुछ तय करती है। क्या तय किया है रुंपा के लिए चलिए सुनते हैं आज की कहानी का *दूसरा भाग*। इस *Podcast* का उद्देश्य है ज़िन्दगी के यथार्थ को बयान करती श्रेष्ठ रचनाकारों कि श्रेष्ठ कहानियों से जनसामान्य को परिचित कराना। कहानी पसंद आए तो शेयर जरूर करना, जिससे एक संवेदनशील समाज का निर्माण हो सके।…
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